किराए की कोठी, चार देशों की जाली एंबेसी और राजनीतिक रसूख… चंद्रास्वामी के संपर्क में कैसे आया फर्जी एंबेसडर हर्षवर्धन जैन?
गाजियाबाद में फर्जी एंबेसडर हर्षवर्धन जैन को लेकर कई बड़े खुलासे हुए हैं. उसने जिस कोठी में चार फर्जी देशों की एंबेसी खोल रखी थी, वह किसी सुनील अनूप सिंह की है. इस कोठी में वह अपनी पत्नी, बेटा और ससुर के साथ रहता था. उसका संपर्क तांत्रिक चंद्रास्वामी से उनके ससुर आनंद जैन (पूर्व यूथ कांग्रेस अध्यक्ष) ने ही कराई थी. फिर चंद्रास्वामी के जरिये वह अंतरराष्ट्रीय हथियार डीलर अदनान से जुड़ा था.

गाजियाबाद के प्रतिष्ठित उद्योगपति जेडी जैन के बेटे हर्षवर्धन ने जिस आलीशान कोठी में नकली देशों की फर्जी एंबेसी खोल रखी थी, वह किराए की है. 12 कमरों की यह कोठी किसी सुनील अनूप सिंह के नाम पर है. बताया जा रहा है कि वह विदेश में रहते हैं और उन्होंने 15 लाख रुपये सालाना के किराए पर यह कोठी हर्षवर्धन को दे रखी थी. एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक हर्षवर्धन ने कोठी मालिक को भी गुमराह करके इस कोठी को किराए पर लिया था.
उन्हें बताया था कि वह कोठी के एक हिस्से में खुद रहेगा और दूसरे हिस्से में एक एमएनसी का ब्रांच शुरू करेगा. चूंकि वह समय से किराए की रकम भेज देता था, इसलिए कोठी मालिक ने ना तो इसकी खुद पड़ताल की और ना ही पुलिस वैरिफिकेशन कराया. एसटीएफ के अधिकारियों के इस कोठी में हर्ष वर्धन अपने परिवार के साथ रहता था. इस कोठी में उसकी पत्नी और 8 साल के बेटे के अलावा ससुर आनंद जैन और एक नौकर रहता था. एसटीएफ ने इस मामले में हर्षवर्धन के नौकर को अरेस्ट करते हुए उसे सरकारी गवाह बनाया है.
इंदिरा गांधी के करीबी थे ससुर आनंद जैन
एसटीएफ की पूछताछ में हर्षवर्धन ने बताया कि दलाली के कारोबार में वह अपने ससुर आनंद जैन की वजह से आया. दरअसल आनंद जैन साल 1976 से साल 2000 तक यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे. इस पद पर रहते हुए वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबी बन गए थे. इंदिरा गांधी के जरिए ही आनंद जैन का संपर्क तांत्रिक चंद्रास्वामी से थे और चंद्रास्वामी का आनंद जैन के घर आना जाना था.
ससुर ने ही चंद्रास्वामी से कराया था परिचय
एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजकुमार मिश्रा के मुताबिक हर्षवर्धन जैन ने पूछताछ में बताया कि साल 2000 में एक दिन वह ससुराल में था. संयोग से उसी दिन चंद्रास्वामी उसके ससुर से मिलने पहुंचे थे. इस दौरान ससुर आनंद जैन ने उसका परिचय चंद्रास्वामी से कराया था. वह चंद्रास्वामी से काफी प्रभावित हुआ और उसके बाद वह चंद्रास्वामी से सीधा संपर्क रखने लगा. साल 2000 में ही शायद अगस्त-सितंबर महीने में अंतरराष्ट्रीय आर्म्स डीलर अदनान खरगोशी भारत आया था और चंद्रास्वामी ने उसकी मुलाकात हर्षवर्धन से करा दी. इसके बाद अदनान और हर्षवर्धन मिलकर करीब पांच साल तक काम करते रहे.
2006 में दुबई गया हर्षवर्धन
इन पांच सालों में हर्षवर्धन ने अपना नेटवर्क खाड़ी देशों तक फैला लिया था, लेकिन भारत में बैठकर डीलिंग संभव नहीं हो पा रही थी. ऐसे में अदनान के कहने पर ही हर्षवर्धन अपने चचेरे भाई के पास साल 2006 में दुबई चला गया. वहीं पर उसने अदनान के साथियों हैदराबाद निवासी शफीक और दुबई के रहने वाले इब्राहिम अली बिन शारमा के साथ मिलकर उमालकुईन में कई शेल कंपनियां खोली और हवाला का कारोबार शुरू किया.
अदनान खरगोशी ने दिलाई एंबेसी
पूछताछ में पता चला है कि साल 2009 में हर्षवर्धन को कुछ स्वयंभू देशों के बारे में पता चला और अदनान के ही नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए साल 2011 में इसने एक स्वयंभू देश से मिलकर उसकी एंबेसी हासिल कर ली और फिर दिसंबर 2011 में भारत आकर गाजियाबाद में उसका दफ्तर खोल लिया. संयोग से यह साल 2012 में सैटेलाइट फोन रखने के आरोप में पकड़ा गया, लेकिन छूटकर बाहर आने के बाद इसने अपने नेटवर्क को इतना विस्तार दिया कि दोबारा पुलिस इसके ऊपर हाथ नहीं डाल पायी.
ये हुई बरामदगी
- डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट लगी चार लग्जरी गाड़ियां
- माइक्रोनेशन देशों के 12 फर्जी डिप्लोमैटिक पासपोर्ट
- विदेश मंत्रालय की मोहर लगे जाली दस्तावेज
- दो फर्जी पैन कार्ड
- विभिन्न देशों और कंपनियों की 34 मोहरें
- दो फर्जी प्रेस कार्ड
- नकद 44,70,000 रुपये
- कई देशों की विदेशी करेंसी
- कंपनियों से जुड़े दस्तावेज
- 18 डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट



