कानपुर रिपोर्ट: 106 बांग्लादेशी हिंदू परिवार, 55 साल का दर्द… आज भी न जमीन और न सरकारी नौकरी

कानपुर में 106 बांग्लादेशी हिंदू परिवार 1971 के बाद से त्रासदी झेल रहे हैं. 55 साल पहले पाकिस्तान से आने के बाद उन्हें खेती के लिए जमीन मिली, लेकिन मालिकाना हक नहीं. आज भी इन्हें सरकारी नौकरियां नहीं मिल पाती हैं. अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मदद की लगा रहे हैं उम्मीद की गुहार.

कानपुर रिपोर्ट: 55 साल बाद भी संघर्ष कर रहे 106 बांग्लादेशी हिंदू परिवार

बात कई दशकों पहले की है. इस समय पाकिस्तान का पूर्वी क्षेत्र हुआ करता था जो बाद में बांग्लादेश बना. लंबी लड़ाई के बाद पाकिस्तान का एक हिस्सा 1971 में बांग्लादेश बन गया लेकिन उससे पहले तक वहां पर अत्याचार की इंतहा थी. ऐसे में सबसे ज्यादा अत्याचार झेला हिन्दू परिवारों ने. जब दर्द और अत्याचार हद से ज्यादा बढ़ गया वो ऐसे हिन्दू परिवार भाग कर भारत आ गए और अलग अलग शहर में बस गए. उस समय जीविका चलाने के लिए उनको कुछ जमीनें दी गई जिससे वो खेती करके अपना गुजर बसर कर सके.

पाकिस्तान के अत्याचार से तो निजात मिल गई लेकिन जीवन से लड़ने की लड़ाई अभी भी चल रही है. कानपुर में आकर बसे 106 हिन्दू परिवार आज भी बेबसी की जिंदगी जी रहे है. यह उनकी दर्द की कहानी है. ये सभी परिवार 55 साल बाद भी बेहद दयनीय हालातों में जीवन बसर कर रहा है.

कानपुर में ऐसे बसे 106 हिन्दू परिवार

पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश बन चुका है वहां पर हिंदुओं पर अत्याचार की इंतिहा हो गई थी. आखिरकार मजबूर होकर कई परिवार भारत की तरफ पलायन कर गए और उनको यहां विस्थापित किया गया. इसमें से 106 परिवार कानपुर के भौति इलाके में आकर बस गया. स्थानीय विधायक अभिजीत सिंह सांगा बताते है कि जब यह परिवार यहां पर आए थे तो भौति गौशाला की काफी जमीन सीलिंग कानून के तहत सरकार के पास आ गई थी. उसी जमीन से सरकार ने इन बांग्लादेशी परिवार को पांच पांच बीघा जमीन प्रति परिवार खेती और जीवन यापन के लिए दी थी.

इनसे कहा गया था कि वो खेती करें और यहीं पर रहे, बाद में उनको जमीन का मालिक भी बना दिया जाएगा. इसके बाद गौशाला वाले सीलिंग के खिलाफ कोर्ट चले गए और बांग्लादेशी हिंदू परिवारों को मालिकाना हक मिलने का मामला खटाई में पड़ गया.

दर्द की कहानी, पीड़ित की जुबानी

टीवी9 की टीम इन परिवारों की स्थिति जानने के लिए ग्राउंड जीरो पर पहुंची. भौति हाईवे के बगल से एक पतली सी रोड जाती है जिसके अंदर कुछ दूर जाने के बाद यह गांव आ जाता है जहां इन परिवारों को बसाया गया था. 1970 में यह परिवार भारत आए थे और 1976 में इनको जमीन दी गई थी. रंजीत सरकार बताते है कि उनको वादा किया गया था कि आप लोग खेती करिए और आगे चलकर यह जमीन आपको दे दी जाएगी. लेकिन तकरीबन 50 साल बाद भी हम उसी हालात में जीवन यापन कर रहे है.

बुजुर्ग महिला मंजू वृंदा तकलीफों को याद करके फूट फूट कर रोने लगती है. उन्होंने बताया कि घर के आदमी भी अब नहीं रहे और बच्चों को परेशान देखकर बेहद दुख होता है. प्रभाती हलदर बताती है कि बच्चों का सरकारी स्कूल में किसी तरह दाखिला तो हो जाता है लेकिन आगे नौकरी नहीं मिलती है. स्थानीय निवासी तिलक चौहान ने बताया कि वो सालों से इन परिवारों को देख रहे है लेकिन इनके जीवन में कोई सुधार नहीं हुआ. आज भी यह लोग बेबसी का जीवन जीने को मजबूर है.

जान बचाने के लिए भारत ही एक ही रास्ता था

नई पीढ़ी के युवा अभय मंडल बताते है कि वो भी सरकारी नौकरी करना चाहते है लेकिन उनको नौकरी नहीं मिलती क्योंकि आज भी उनके ऊपर बांग्लादेश (पाकिस्तानी) होने का ठप्पा लगा हुआ है. बुजुर्ग विनय मंडल उन दिनों को याद करते हुए रोने लगते है. उन्होंने बताया कि वह समय हिन्दुओं पर बेहद अत्याचार करने वाला था. घर की बहन बेटियों की आबरू भी खतरे में थी. जान बचाने के लिए एक ही रास्ता नजर आया की भारत चला जाए. यहां पर सुरक्षा और खेती के लिए जमीन भी मिली लेकिन मालिकाना हक नहीं मिला.

बेहद दयनीय स्थिति में हो रहा जीवन यापन

जो जमीन खेती के लिए मिली थी उसी के थोड़े से हिस्से में झोपड़ी बनाकर यह हिन्दू बांग्लादेशी परिवार रहते है. पक्के मकान की जगह मिट्टी और फूस की बनी हुई झोपड़ियां है. बाहर बदबूदार नाले बह रहे जो अपने आप में बीमारी का घर है. मालिकाना हक नहीं मिला है तो पक्के मकान भी नहीं बना सकते. छोटे छोटे बच्चे हो या बुजुर्ग सभी एक झोपडी में रहने को मजबूर है. शौचालय भी कहीं नजर नहीं आए. महिलाओं के लिए बमुश्किल पर्दे का इतंजाम हो पाता है.

अब शासन और सीएम योगी से उम्मीद

विधायक अभिजीत सिंह सांगा ने बताया कि मालिकाना हक देने का निर्णय सरकार को करना है और प्रशासन को यह प्रस्ताव भेजना होगा. सीएम योगी ने पीलीभीत के ऐसे ही परिवारों को मालिकाना है देने की घोषणा की थी जिसके बाद कानपुर के परिवारों को भी उम्मीद की किरण नजर आई है. सांगा का कहना है कि गौशाला सोसायटी वाले कोर्ट गए थे लेकिन आज तक उनके हक में कोई फैसला नहीं आया, ऐसे में वो सीएम योगी से मांग करते है कि इन सभी परिवारों को मालिकाना हक अब तुरंत दिया जाए. अब इन परिवारों को यही उम्मीद और आस है कि सीएम योगी जल्द ही उनको मालिकाना हक देंगे और वो भी भारतीयों की तरह अपना जीवन यापन कर पाएंगे.