‘हम व्हीलचेयर वाले स्टूडेंट्स को नहीं देते एडमिशन’, DM की फटकार के बाद झुका यूनिवर्सिटी
कानपुर में एक निजी विश्वविद्यालय का तुगलकी फरमान सामने आया, जब उसने लॉ की छात्रा को सिर्फ इस वजह से दाखिला देने से मना कर दिया क्योंकि छात्रा दिव्यांग थी. छात्रा ने परेशान होकर जनता दरबार का दरवाजा खटखटाया. जिसके बाद आखिरकार विश्वविद्यालय को झुकना पड़ा.

कानपुर के एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने दिव्यांग छात्रा श्रेया शुक्ला को व्हीलचेयर पर होने के कारण एलएलएम में प्रवेश देने से मना कर दिया. श्रेया के पिता ने जिलाधिकारी से शिकायत की जिसके बाद प्रशासन ने विश्वविद्यालय पर दबाव डाला. यूजीसी के नियमों और दिव्यांग अधिकार अधिनियम का हवाला देते हुए, प्रशासन ने विश्वविद्यालय को श्रेया को प्रवेश देने के लिए मजबूर किया.
यह घटना दिव्यांगों के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है. कानपुर प्रशासन की सख्ती और हस्तक्षेप के बाद आखिरकार विश्वविद्यालय को झुकना पड़ा और उसने छात्रा श्रेया शुक्ला को दाखिला दे दिया. श्रेया के पिता एल.के. शुक्ल जो खुद भी अधिवक्ता है, उन्होंने जनता दर्शन में जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह से मुलाकात कर विश्वविद्यालय के इस फरमान की जानकारी दी थी.
LLM में एडमिशन के लिए छात्रा ने की थी अप्लाई
कानपुर के रामबाग निवासी श्रेया शुक्ला ने डीसी लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की है. वह अब एलएलएम करना चाहती थी. इसके लिए श्रेया ने एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में अर्जी लगाई. विश्वविद्यालय ने पहले उन्हें प्रवेश का भरोसा दिया और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात भी कही. लेकिन जब श्रेया 29 जुलाई को दाख़िले के लिए पहुंचीं, तो यह कहकर मना कर दिया कि हम व्हीलचेयर पर आने वाले स्टूडेंट्स का दाख़िला नहीं लेते है.
इस बात से श्रेया परेशान हो गई और उसने विश्वविद्यालय प्रशासन से शिकायत की, लेकिन उसकी नहीं सुनी गई. इसके बाद उसके पिता एल.के. शुक्ल ने जनता दर्शन में जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह से मिले और पूरे प्रकरण की विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने यूजीसी के दिशा-निर्देश, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए बेटी के साथ हुए भेदभाव की शिकायत की.
DM की कार्रवाई के बाद मिला दाखिला
जिलाधिकारी ने इसे अत्यंत गंभीर प्रकरण मानते हुए एसडीएम सदर अनुभव सिंह को निर्देशित किया कि प्राइवेट यूनिवर्सिटी प्रबंधन से बात कर छात्रा को उसका विधिक अधिकार दिलाया जाए. एसडीएम सदर ने उसी दिन विश्वविद्यालय से वार्ता कर नियमों की जानकारी दी और स्पष्ट निर्देश दिया कि दिव्यांग छात्रों को शिक्षा से वंचित करना न केवल अनुचित, बल्कि कानून के खिलाफ है.
इसके बाद एक अगस्त को यूनिवर्सिटी ने इंट्रेंस टेस्ट आयोजित किया जिसे श्रेया ने अच्छे अंकों के साथ पास किया. इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने श्रेया को दाख़िला दे दिया. छात्रा और उनके पिता ने जिलाधिकारी और प्रशासन के प्रति आभार व्यक्त किया. उनका कहना था कि यदि समय पर यह हस्तक्षेप न हुआ होता, तो एक योग्य छात्रा का साल बर्बाद हो जाता.
किसी भी संस्था को अधिकार नहीं है कि वह…
जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि सरकार ने दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण के लिए समुचित नियम बनाये हैं. इनका कड़ाई से पालन किया जाना अनिवार्य है. किसी भी संस्था को अधिकार नहीं है कि वह दिव्यांगता की विशेषीकृत श्रेणी के आधार पर किसी छात्र या छात्रा को शिक्षा से वंचित करे. यदि ऐसा कोई मामला सामने आता है तो प्रशासन पूरी कठोरता से कार्यवाही करेगा.



