स्वाद वही, पता नया….चाची की कचौड़ी और पहलवान लस्सी की दुकान फिर से खुली

काशी की पहचान बन चुकी चाची की कचौड़ी और पहलवान लस्सी की दुकानें अब टेम्परेरी तौर पर दोबारा खुल गई हैं. इन दुकानों पर लोगों की पहले जैसी भीड़ दिखाई दे रही है. हांलाकि दुकान मालिकों को इस बात का मलाल जरूर है कि इनकी दुकाने हटने के बाद इन्हें अब तक कोई मुआवजा नही मिला है. फिर भी चाची की कचौड़ी चखने के लिए भीड़ लगी हुई है.

चाची कचौड़ी की दुकान Image Credit:

लंका चौराहे की वो दो दुकाने जो काशी की पहचान बन चुकी थीं, चाची की कचौड़ी और पहलवान लस्सी. इन्हें मलबे के ढ़ेर में तब्दील कर दिया गया था, लेकिन अब एक बार फिर इन दुकानों का स्वाद चखने के लिए लोगों की भीड़ जुटने लगी है. ये दोनों दुकानें अस्थाई रूप से फिर से शुरू हो चुकी हैं. सड़क चौड़ीकरण के लिए पीडब्ल्यूडी ने बीते मंगलवार रात करीब 110 साल पुरानी इन दुकानों को बुलडोज़ कर दिया था, जिसके बाद इसे लेकर लोगों की अलग- अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई थीं.

पहलवान लस्सी की दुकान

दुकानदारों का झलका दर्द

चाची की कचौड़ी, जो करीब 110 साल पुरानी दुकान थी, अब फिर से एक अस्थायी ठिकाने के तौर पर शुरू की गई है. दुकान के मालिक कैलाश यादव ने बताया कि पुरानी दुकान के सामने जो एक छोटा सा गोदाम था, अब उसी को कटरा बनाकर उन्होंने दुकान शुरू कर दी है. कैलाश का कहना है कि लोग पहले की तरह ही आ रहे हैं, प्यार दे रहे हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिल पाया है. बात करते हुए उनका दर्द छलक पड़ा. उन्होंने कहा, “भईया, बड़े-बड़े लोग और सेलिब्रिटी यहां कचौड़ी खाने आते थे, लेकिन इस बुरे वक़्त में किसी ने एक फोन तक नहीं किया।”

मुआवजे को लेकर हैं परेशान

वहीं, पहलवान लस्सी की दुकान भी अस्थायी तौर पर ओबारबा सैलून वाली बिल्डिंग में शुरू हो गई है. दुकान के मालिक मनोज यादव ने बताया कि दुकान अभी टेम्परेरी तौर पर शुरू की गई है. उन्होंने कहा कि अभी स्थायी दुकान की तलाश की जा रही है.ये दोनों दुकानें काशी की पहचान बन चुकी हैं. अभी ये टेम्परेरी तौर पर शुरू की गई हैं. दुकान मालिकों की मांग है कि उनको मुआवजा मिलना चाहिए, ताकि वे अपना काम फिर से स्थाई तौर से शुरू कर सकें. हांलाकि इसे लेकर प्रशासन की तरफ से कोई बात सामने नही आई है.