अगस्त क्रांति: बागी बलिया को यूं ही नहीं कहा जाता ‘वीरों की धरती जवानों का देश’, आजादी से 5 साल पहले हुआ था आजाद
देश भले ही 1947 में आजाद हुआ, लेकिन बलिया ने 1942 में ही आजादी का स्वाद चख लिया था. आजादी के जिस आंदोलन को पूरा देश अगस्त क्रांति के रूप में मनाता है, उसे बलिया वाले आज भी बड़े गर्व के साथ बलिया क्रांति या बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं. इस उत्सव में बड़ी बात यह है कि आज भी बलिया के बागी जेल पर धावा बोलते हैं और ताला तोड़ कर कैदियों को आजाद कराते हैं. फिर आजादी के तराने गाते हुए कलक्ट्रेट पर तिरंगा फहराते हैं.
अगस्त का महीना बलिया वालों के लिए बेहद खास है. इस महीने में बलिया वालों की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है. इस महीने में बलिया बागी हो जाता है और बलिया वाले मतवाले. बलिया में सदियों से चली आ रही इस परंपरा और बगावती तेवर को एक बार बरतानिया हुकूमत ने भी देखा. उस समय लाठी डंडे लेकर बलिया वालों ने बंदूकधारी अंग्रेजों को ना केवल खदेड़ लिया, बल्कि 24 घंटे के लिए डीएम की कुर्सी तक छीन ली थी. यही तो वह गौरव वाला पल था, जब देश की आजादी से पांच साल पहले बलिया ने आजादी का स्वाद चख लिया.
अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिल गई, पूरे देश में जीतकर भी बलिया में मात खाने वाले अंग्रेजों को आखिरकार अपने गजेटियर में बलिया को बागी लिखना पड़ा. यही वजह है कि आजादी के बाद सरकारी दस्तावेजों और बलिया के इतिहास से जुड़ी किताबों में भी बलिया का परिचय ‘वीरों की धरती जवानों का देश, बागी बलिया उत्तर प्रदेश’ के रूप में दिया जाने लगा. इस गौरव गाथा की शुरुआत मुंबई में महात्मा गांधी के 8 अगस्त 1942 को ‘करो या मरो’ और ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ नारे के साथ होती है. इस नारे को सुनकर बलिया वाले कन्फ्यूज हो गए कि आखिर करें कैसे और मरें कैसे? इसी बीच खबर आई कि गांधी जी के साथ जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को मुंबई में अरेस्ट कर लिया गया है.
झाडू-बेलन लेकर निकल पड़ी थी महिलाएं
यह खबर मिलते ही बलिया वाले बावले हो गए. कुछ नहीं समझ में आया तो बलिया के बुजुर्ग हाथों में लाठी डंडे लेकर ही सरकार से लड़ने निकल पड़े. उनके पीछे युवाओं ने तलवार भाला उठा लिया तो बलिया की वीरांगनाएं भी पीछे नहीं रहीं. कोई झाड़ू लेकर निकली तो कोई हाथ में बेलन या चइला (चूल्हे की लकड़ी) ही लेकर दौड़ पड़ी. जनाक्रोश का आलम यह था कि देखते ही देखते थाने फूंके जाने लगे. सरकारी दफ्तर लूट लिए गए और रेल की पटरियां उखाड़ दी गई. बड़ी बात यह कि उस समय कोई नेता नहीं था, लेकिन अगुवाई हरेक आदमी कर रहा था. देखते ही देखते बलिया वालों ने कलक्ट्रेट को चारो दिशाओं से घेर लिया.
पहली बार डीएम ने लिखा- ‘बलिया बागी हो गया’
उस समय बलिया के डीएम जगदीश्वर निगम हुआ करते थे. उन्होंने लोगों के उबाल को देखा तो तुरंत वॉयसराय को मैसेज किया. लिखा कि ‘बलिया बागी हो गया है, अब इसे कोई नहीं रोक सकता’. इससे पहले डीएम ने बलिया के बागियों को रोकने के लिए पूरी फोर्स उतार दी थी. बागियों के ऊपर घोड़े दौड़ाए. अंग्रेजी फौज ने बैरिया में 20 क्रांतिकारियों को गोलियों से भून दिया. इससे बलिया में और आक्रोश फैल गया. स्थिति यहां तक बन गई कि लोगों ने बैरिया कोतवाल समेत सभी पुलिसकर्मियों को बंधक बनाकर उनके ही लॉकअप में डाल दिया.
बैरया थाने में हुआ आर या पार का फैसला
कोतवाल को बंधक बनाने के बाद बैरिया थाने में ही बागियों की बैठकी हुई, तय हुआ कि रोज रोज की झंझट अब खत्म करना होगा. रातों रात यह फैसला जिले के कोने कोने तक पहुंच गया. फिर 19 अगस्त की सुबह लोग आर-पार की लड़ाई के लिए निकल पड़े. इधर, जिले भर से आ रहे बागियों की खबर सुनकर डीएम जगदीश्वर निगम की हालत खराब हो गई. वह हाथ जोड़े हुुए अपने ऑफिस से बाहर निकले और सामने महान क्रांतिकारी चित्तू पांडेय को देखते ही उनके पैरों में पगड़ी रख दी. इसी के साथ उन्होंने अपनी कुर्सी भी उन्हें सौंप दी. इतने में बागियों के एक जत्थे ने बलिया जेल पर धावा बोलते हुए गेट तोड़ कर सभी बागियों को आजाद करा लिया था.
बलिदान दिवस मनाता है बलिया
पूरे देश में 8 अगस्त को अग्रस्त क्रांति दिवस मनाया जाता है, लेकिन बलिया वाले इसी उत्सव को 19 अगस्त के दिन बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं. इसे बलिया क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. उन्हीं गर्व के क्षणों को याद करते हुए बलिया में आज भी 19 अगस्त को जेल के ताले टूटते हैं. जेल में बंद कैदियों की रिहाई होती है और फिर वहीं से बलिया के बागी आजादी के तराने गाते हुए कलक्ट्रेट पर आकर तिरंगा फहराते हैं. फिर एक सुर और ताल में दोहराया जाता है ‘वीरों की धरती जवानों का देश, बागी बलिया उत्तर प्रदेश’.