अगस्त क्रांति: जूते के फीते से बांधा ब्रिटिश क्राउन का ताज, गांधी जी के आह्वान पर बागी हो गया बलिया
पूरा देश अगस्त क्रांति दिवस मनाता है तो उत्तर प्रदेश का बलिया अलग से बलिया क्रांति यानी बलिदान दिवस मनाता है. इस बलिया क्रांति के पीछे बलिया की बगावत और देश की आजादी से पांच साल पहले आजाद होने की कहानी छिपी है. बलिया क्रांति गांधी जी की गिरफ़्तारी की खबर के बाद जन विद्रोह के रूप में शुरू हुई थी, जिसे अंग्रेजों ने बगावत नाम दिया था.

पूरा देश दो दिन बाद यानी 8 अगस्त को अगस्त क्रांति दिवस मनाने की तैयारी में है. कुछ इसी तरह की तैयारी धारा से अलग चलने वाले बलिया में भी हो रही है. यहां अगस्त क्रांति नहीं, बल्कि बलिया क्रांति यानी बलिदान दिवस का जश्न होगा. यह आयोजन 19 अगस्त को होगा और हमेशा की तरह यहां एक बार बागी हूंकार भरेंगे, फिर बलिया जेल के ताले टूटेंगे और बागी छूटेंगे. इस बार भी बलिया के डीएम यह सबकुछ होते हुए अपनी नजरों से देखेंगे.
इस तरह का नजारा देश के शायद ही किसी जिले में होता हो. इस प्रसंग में हम वही कहानी बताने जा रहे हैं, जिसकी शुरूआत 8 अगस्त 1942 को मुंबई में गांधी जी के भाषण से हुई. गांधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया था और मुंबई में प्रस्तावित एक सभा में वह ‘करो या मरो’ का नारा देने वाले थे. पूरा देश उस वक्त का इंतजार कर रहा था. लोग रेडियो से चिपके हुए थे. इसी बीच खबर आई कि महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को मुंबई में अरेस्ट कर लिया गया है.
गिरफ्तारी की खबर सुनते निकल पड़े थे लोग
इस खबर पर पूरे देश में उबाल आ गया था. उबाल तो बलिया में भी आया था, लेकिन यहां का उबाल बाकी जगह से काफी अलग था. गांधी जी की गिरफ्तारी खबर सुनते ही जिले के कोने कोने से बच्चे, बूढे, जवान सभी अपने घरों से निकलकर जिला मुख्यालय की ओर चल दिए. टारगेट गुलामी की जंजीरों को तोड़ फेंकना और स्वदेशी राज की स्थापना था. आलम यह था कि किसी भी गांव से एक आदमी आगे बढ़ता तो बिना बुलाए ही उसके पीछे कारवां बन जाता. दोपहर के दो बजे तक सैकड़ों लोग बलिया कलक्ट्रेट पहुंच चुके थे.
पुलिस ने भीड़ पर दौड़ाए घोड़े
अचानक बढ़ती भीड़ को देख पुलिस ने हजारों लोगों को शहर की सीमा के बाहर रोकने की कोशिश की. लोगों के जत्थे को सीयर, नगरा, सिकंदरपुर, मनियर, बांसडीह और बरिया आदि स्थानों पर रोका गया, लेकिन भीड़ बेकाबू हो गई. हालात को देखते हुए बलिया के तत्कालीन डीएम जगदीश्वर निगम ने भीड़ पर फायरिंग और घोड़े दौड़ाने के आदेश दे दिए. इस घटना में दर्जनों लोग मारे गए, जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे. उस दिन तो हुकूमत ने भीड़ को कंट्रोल कर लिया, लेकिन अगली सुबह यानी नौ अगस्त की सुबह बलिया वालों का जोश और जुनून देखने लायक था.
और बलिया बागी हो गया
यह नौ अगस्त का ही दिन था, जब बलिया के नाम में बागी शब्द आधिकारिक तौर पर जुड़ा. दरअसल इस दिन महान क्रांतिकारी बाबू जगन्नाथ सिंह ने अपने जूते में ब्रिटिश क्राउन के ताज को बांध लिया और ठोकर मारते हुए कलक्ट्रेट पहुंच गए थे. उधर, जिले भर से लोग सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए जिला मुख्यालय पहुंचने लगे. किसी के हाथ में लाठी-डंडा तो किसी के हाथ में भाला-बरछी. आज तो महिलाएं भी हाथ में बेलन, चिमटा और चईला (चूल्हे की अधजली लकड़ी) लेकर निकल पड़ी थीं. हालात को देखते हुए बलिया डीएम की हालत खराब हो गई और उन्होंने वॉयसराय को भेजे पत्र में कहा था कि बलिया बागी हो गया और अब इसे आजाद होने से कोई नहीं रोक सकता.
जिले में भर हुई थी बगावत
बलिया की बगावत केवल जिला मुख्यालय पर ही नहीं, पूरे जिले भर में हो गई. सीयर, चरौवां, बैरिया, बांसडीह और गड़वार में बागियों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ दी. इस दौरान अंग्रेजी फौज और पुलिस ने लोगों को कंट्रोल करने की कोशिश की. इसके लिए पहले लाठी चलाया, भीड़ पर घोड़े दौड़ाए, फिर भी भीड़ काबू नहीं हुई तो फायरिंग शुरू कर दी. ऐसे में इन सभी स्थानों पर दर्जनों लोग या तो मारे गए, या फिर बुरी तरह जख्मी हो गए. इतने के बाद भी हुकूमत बलिया वालों का मनोबल नहीं तोड़ पाई और महज 10 दिनों की बगावत में बलिया वालों ने किला फतेह कर लिया. 19 अगस्त को बलिया आजाद हो गया. बलिया कलक्ट्रेट पर चैक फ्लैग की जगह तिरंगा लहराने लगा.



