‘बहुत भयानक था’, उन्नाव केस में कुलदीप सेंगर की बेल के HC के फैसले को SC ने क्यों पलटा?
उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सेंगर की जमानत रद्द कर दी है. कोर्ट ने नाबालिग पीड़िता के साथ हुए भयानक अपराध और पॉक्सो कानून की अनदेखी पर कड़ा रुख अपनाया. मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले को जघन्य बताया और कहा कि लोकसेवक द्वारा किया गया अपराध अधिक गंभीर है. सीबीआई ने भी हाईकोर्ट के फैसले का विरोध किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया.
उन्नाव रेप केस में सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के तेवर बड़े सख्त थे. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व MLA कुलदीप सेंगर को जमानत देने संबंधी हाईकोर्ट के फैसले पलटते हुए कहा कि नाबालिग के साथ बहुत ही भयानक रेप हुआ. हाईकोर्ट ने भी मामले की सुनवाई करते हुए इस अपराध में लगे सेक्शन 376 IPC और पॉक्सो के section-5 पर गौर नहीं किया. यह सामान्य अपराध नहीं कहा जा सकता. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि पीड़ित नाबालिग नहीं होती तो भी आईपीसी की धारा 376 i के तहत न्यूनतम सजा का प्रावधान लागू होता है.
सीजेआई ने सॉलिसीटर जनरल से पूछा कि क्या आपका तर्क ये है कि पीड़िता नाबालिग है तो हाईकोर्ट का आदेश उचित नहीं, साथ ही आरोपी को लोकसेवक नहीं माना जा सकता. यह बाद में तय किया जाएगा कि आरोपी को लोकसेवक माना जाए या नहीं. अपनी टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को जघन्य बताया. कोर्ट में अपनी दलील रखते हुए सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि आरोपी को दोषी करार देने की वजह स्पष्ट थी. यह एक लोकसेवक का कृत्य था. वारदात के वक्त पीड़िता की उम्र महज़ 15 साल 10 महीने थी. वहीं मामले में पॉक्सो की धारा लगाने की वजह भी पीड़िता का नाबालिग होना था.
CBI ने किया HC के फैसले का विरोध
सीबीआई की ओर से एसजी तुषार मेहता ने दलील देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने पूर्व एमएलए कुलदीप सेंगर को जमानत देते समय कई पहलुओं पर विचार ही नहीं किया. जबकि यह नाबालिग के साथ भयानक तरीके से रेप का मामला है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर सहमति प्रकट की. एसजी ने कहा कि यदि रेप किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जो प्रभुत्वशाली स्थिति में है, तो उसके लिए न्यूनतम कारावास 20 वर्ष है. इसे जीवन भर के लिए बढ़ाया जा सकता है. हालांकि अब इसमें संशोधन हो चुका है.
अपराधी के लोक सेवक होने पर हुई बहस
इसके जवाब में जस्टिस जेके माहेश्वरी ने कहा कि वारदात के वक्त यह संशोधन नहीं था. इसलिए (i) उस समय लागू था. इसपर एसजी ने कहा कि 376 की धारा चाहे एक हो या दो, आजीवन कारावास तो है ही. इसमें दोषी को चाहे 20 साल की सजा मिले या आजीवन कारावास. सुनवाई के दौरान सीजेआई ने फिर पूछा कि क्या आप कह रहे हैं कि यदि पीड़िता नाबालिग है तो लोक सेवक की अवधारणा अप्रासंगिक हो जाती है? इसके जवाब में एसजी ने कहा कि जी हां. पैनेटेरेटिव यौन हमला एक गंभीर अपराध है.
सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया फैसला
गर्मागर्म बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें हाईकोर्ट ने सेंगर की आजीवन कारावास की सजा को सस्पेंड कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की वेकेशन बेंच में हुई. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी पूर्व विधायक सेंगर एक अन्य मुकदमे में 10 साल की सजा होने की वजह से जेल से बाहर नहीं आ सके थे. यह मामला भी उन्नाव रेप केस से ही संबंधित है. इसमें पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत हुई थी.
क्या है उन्नाव रेप केस?
साल 2017 में उन्नाव जिले की एक नाबालिग लड़की के साथ रेप का मामला सामने आया था. लड़की ने आरोप बीजेपी के तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर लगाए थे. बताया जा रहा है कि इस तरह का आरोप लगते ही पीड़ित और उसके परिवार पर खूब जुल्म ढाया गया. बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने सेंगर को अरेस्ट किया. फिर मामला यूपी से दिल्ली ट्रांसफर हो गया और साल 2019 में दिल्ली के ट्रायल कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इसी प्रकार पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत और गवाहों को प्रभावित करने के मामलों में भी कोर्ट ने सेंगर को दोषी माना और इसमें भी उसे 10 साल की सजा सुनाई गई. इसी बीच 23 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की अपील लंबित रहने तक सजा निलंबित कर दी और उसे सशर्त जमानत दे दी थी.